A JOURNEY IN TO HEALING

Dedication : This blog is dedicated tothose great spirits(Sants), who following the tradition of Guru Shishya, deemed me worthy of attention and introduced me to PRAN DHYAN, the method of simplest and highest form of meditation. Where direct and indirect blessings are always with me, by the path shown by the them. With the effect that I guide and sport those who are mentally disturbed in some forms and are in search of peace. In life through positive thinking and meditation I have come back to my self. If you like to come, you’re. Note: I only show you the way, you only have to walk. You will only receive sensations. Come to thy self increase your self power.

समर्पण
यह ब्लॉग उन महान आत्माओं (संतों) को समर्पित है जिन्होंने गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत मुझे इस योग्य समझा और प्राण ध्यान की विधि से मेरा परिचय कराया जोकि ध्यान की सबसे सरलतम एवं उच्चतम विधि है। उन महान संतों को, जिनका परोक्ष / अपरोक्ष आशीर्वाद सदैव मेरे सिर पर रहता है। इस आशय के साथ कि उनके द्वारा दिखाए मार्ग द्वारा मै उन लोगों का सहयोग करूँ जो किसी न किसी रूप में मानसिक रूप से परेशान हैं। जिन्हें शांति की तलाश है. सकारात्मक सोच और प्राण ध्यान के माध्यम से मै अपने पास वापस आ गया हूँ। यदि आप भी आना चाहें तो आपका स्वागत है। ध्यान रहे ! मै केवल आपको मार्ग दिखाऊँगा, चलना आप ही को पड़ेगा। अनुभूतियाँ आप ही को प्राप्त होंगी। अपने खुद के पास आइए, अपनी ऊर्जाशक्ति को बढ़ाईए।

मन मस्तिष्क की जानकारी

मन मस्तिष्क की जानकारी


निष्कपटपवित्रसुसंस्कारित एवं प्रखर मन जब विराट मन से जुड़ जाता है तो वह सुपरचेतन स्तर को प्राप्त कर लेता है। यही वह क्षेत्र हैजिसे ॠध्दि-सिध्दियों का भांडागार कहा जाता है। आत्मा को परमात्मा सेव्यष्टि से समष्टि को मिलाने में यही मन सेतु का काम करता है। अब तो मनोविज्ञानियोंपरामनोवेत्ताओं एवं अनुंसधार्नकत्ता चिकित्साविदों ने भी इस तथ्य की पुष्टि कर दी है कि मानसिक क्षेत्र की विकृतियां ही शरीर और मस्तिष्क को रुग्ण एवं विक्षुब्ध बनाती हैं। मानसिक परिशोधन के बिना न तो आरोग्य समस्या का पूर्ण समाधान हो सकता है और न जीवन की अन्यान्य समस्याएं ही सुलझ सकती हैं। मानसिक परिष्कार के बिना अध्यात्म-साधना के क्षेत्र में तो एक पग भी आगे नहींबढ़ा जा सकता। मनःशक्ति जड़ जगत और चेतन जगत के बीच का एक महत्वपूर्ण सेतु हैघटक है। इसलिए लौकिक जीवन में इसका सर्वोपरी महत्त्व है। जेनेटिक साइंस के नवीनतम शोधों ने यह भी रहस्योद्धाटन किया है कि शरीर की समस्त कोशाएं तथा परमाणु पूरी तरह मनःशक्ति के नियंत्रण में हैं। यही क्रम वंश -परंपरा में भी तथा मरणोत्तर जीवन में समानरूप से गतिशील बना रहता है। मनोवेत्ता फ्रायंड के 'सुपरईगोआदि की परिधि तक सीमित मन को प्रख्यात जर्मन मनोवैज्ञानिक हेंस बेंडर अतींद्रिय क्षमता तक ले जाने में सफल हुए। इसके लिए उन्होंने अनेक प्रमाण भी प्रस्तुत किए हैं। टेलीपैथी पर अत्यधिक खोज-बीन करने वाले मूर्ध्दन्य परामनोवेत्ता रेनेबार्क लियर के अनुसार मन की व्याख्या पदार्थ विज्ञान के प्रचलित सिध्दांतों द्वारा संभव नहीं है। अतः इसके क्रियाकलापों के लिए भी इससे परे सोचने-समझने की बुध्दि विकसित की जानी चाहिए। तभी चेतना से अथवा चेतना से परे जाकर संबंधसंपर्क बना पाना संभव है और यह सब मानसिक परिष्कार के बिना संभव नहीं हैं। यों तो भौतिक विज्ञानी मन-मस्तिष्क को एक मानकर उसी की खोज-बीन में गंभीरतापूर्वक संलग्न हैं। इतने पर भी तन-मस्तिष्क की समूची जानकारी अभी उनके हाथ नहीं लगीअन्यथा उसमें एक से एक बढ़कर विलक्षणाताएं और संभाावनाएं सन्निहित हैं। मस्तिष्कीय परमाणु में भारघनत्वविस्फूटन तथा चुंबकीय क्षेत्र का भौतिक परिचय देने वाले तत्त्वों की खोज करते समय वैज्ञानिक ऐसे अतिसूक्ष्म विद्युतीय कणों के संपर्क में आए हैंजिनमें भौतिक परमाणु जैसे लक्षण नहीं हैं। ये विद्युतकण आकाश में स्वच्छंद बिचरण करने में सक्षम हैं। इनमें भौतिक परमाणुओं को वेधकर निकल जाने की क्षमता है। इन कणों का नियंत्रण-नियमन भी संभव नहीं है। इन्हें पकड़कर स्थिर भी नहीं किया जा सकता। इन कणों की उपस्थिति का बोध भी परस्पर टकराव कारण हो पाता है। वैज्ञानिक इन कणों को ही अतींद्रिय क्षमताओं के विकास के लिए उत्तरदायी मानते हैं। सुप्रसिध्दगणितज्ञ एवं विज्ञानवेत्ता एड्रियो हॉब्स ने इन काणों को 'न्यूट्रिनोनाम दिया हैतो कुछ वैज्ञानिक इन्हें 'माइण्डास', 'साइन्नोंस', आदि नामों से पुकारते हैं। अनुसंधार्नकत्ता वैज्ञानिकों का कथन है कि जब मस्तिष्क के न्यूरोन कण इन माइण्डांस कणों के संपर्क में आते हैंतब पूर्वाभास जैसी घटनाओं की अनुभूति होती है। इससे सिध्द होता है कि ब्रह्मांडव्यापी घटनाओं का मूल उद्गम एक है तथा मानवीय मनश्चेतन का उससे किसी न किसी रूप में संबंध अवश्य है। साइन्नोन कणों का मस्तिष्कीय चेतन पर किस तरह प्रभाव पड़ता हैइस पर वैज्ञानिक गंभीरतापूर्वक अनुसंधानरत हैं। सुप्रसिध्द विज्ञानी एक्सेल फेरिसिस का इस संबंध में कहना है कि जब साइन्नोन कण न्यूरोन कणों से मिलते हैंतब माइण्डान या माइन्जेन नामक ऊ र्जा कणों का जन्म होता है। इससे मनुष्य का ब्रह्मांडव्यापी चैतन्य ऊर्जा से स्वतः संबंध स्थापित हो जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन सूक्ष्मातिसूक्ष्म कणों से समूचा विश्व-ब्रह्मांड भरा पड़ा है और ये प्रकाश की गति से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचते हैं। उनके अनुसार ये कण निर्बाध रूप से अहर्निश हमारी काया के आर-पार आते-जाते रहते हैं। एक गणितीय आकलन के अनुसार एक व्यक्ति के पूरे जीवनकाल में कुल 1024 माइण्डान्स या न्यूट्रिनो कण शरीर से गुजर चुके होते हैं। हमारी मानसिक विचार-तरंगें इन्हीं तरंगों परकणों पर सवार होकर सृष्टि के एक कोने से दूसरे कोने तक तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचती हैं। इसमे प्रमुख भूमिका इसके वाहक कणों की ही रहती है। हमारे माइण्डान्स जितने परिशोधितपरिष्कृत एवं प्रचंड होंगेहम दूसरों को प्रभावित करने एवं सहयोगी बनाने में उतने ही अधिक सफल होंगे।
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