A JOURNEY IN TO HEALING

Dedication : This blog is dedicated tothose great spirits(Sants), who following the tradition of Guru Shishya, deemed me worthy of attention and introduced me to PRAN DHYAN, the method of simplest and highest form of meditation. Where direct and indirect blessings are always with me, by the path shown by the them. With the effect that I guide and sport those who are mentally disturbed in some forms and are in search of peace. In life through positive thinking and meditation I have come back to my self. If you like to come, you’re. Note: I only show you the way, you only have to walk. You will only receive sensations. Come to thy self increase your self power.

समर्पण
यह ब्लॉग उन महान आत्माओं (संतों) को समर्पित है जिन्होंने गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत मुझे इस योग्य समझा और प्राण ध्यान की विधि से मेरा परिचय कराया जोकि ध्यान की सबसे सरलतम एवं उच्चतम विधि है। उन महान संतों को, जिनका परोक्ष / अपरोक्ष आशीर्वाद सदैव मेरे सिर पर रहता है। इस आशय के साथ कि उनके द्वारा दिखाए मार्ग द्वारा मै उन लोगों का सहयोग करूँ जो किसी न किसी रूप में मानसिक रूप से परेशान हैं। जिन्हें शांति की तलाश है. सकारात्मक सोच और प्राण ध्यान के माध्यम से मै अपने पास वापस आ गया हूँ। यदि आप भी आना चाहें तो आपका स्वागत है। ध्यान रहे ! मै केवल आपको मार्ग दिखाऊँगा, चलना आप ही को पड़ेगा। अनुभूतियाँ आप ही को प्राप्त होंगी। अपने खुद के पास आइए, अपनी ऊर्जाशक्ति को बढ़ाईए।

नकारात्मक सोच और उसके परिणाम

नकारात्मक सोच और उसके परिणाम


नकारात्मक सोच रखने वाले अपनी जीवन शैली में कभी भी बदलाव नहीं ला सकते है। सकारात्मक सोच से सकारात्मक परिणाम आते है और नकारात्मक सोच के नकारात्मक परिणाम ही मिलते हैं। हमेशा सकारात्मक सोच रखें । सकारात्मक सोच से ही मनुष्य तनाव रहित जीवन जी सकता है । पढ़ाई के दौरान सकारात्मक सोच रखें ,आलोचनात्मक सोच न रखें।
आज हर व्यक्ति भागदौड, व्यर्थ की प्रतिस्पर्धा,तनाव को साथ लिए हैरान ,परेशान है.शान्ति बेचारी तो कहीं इस भीड़ में गम हो गई है .इसी कारण कोई भाग्यवान परिवार मिलना दुर्लभ है जहाँ आरोग्य देव का वरद हस्त सब के सिर पर हो .संसार का प्रथम सुख निरोगी काया को माना गया है परन्तु जब पूर्णतया निरोगी काया मिलना दुर्लभ है तो संसार में सुखी कौन हो सकता है.किसी को शारीरिक तो किसी को मानसिक और किसी को दोनों कम या अधिक रोग किसी  न किसी रूप में अपना शिकार बनाए हुए हैं.अधिकांश व्यक्तियों का जीवन औषधियों पर ही आधारित है.कुछ रोगों का कारण आनुवांशिक या कोई  शारारिक समस्या हो सकता है परन्तु अधिकांश रोग हमारे अपने ही पाले हुए हैं.  अपने पाले होने से अभिप्राय है जिस  शत्रु  से है,वह है नकारात्मक सोच.असल में सीधे शब्दों में गलत सोचना,सबको दोषी मान बैठना ,व्यर्थ में उलझना …………..आदि लक्षण नकारात्मक सोच के हैं.ऐसे लोग स्वयम तो दुखी आत्मा होते ही हैं अपने व्यवहार से औरों को भी  तनावग्रस्त बनाते हैं. यदि ऐसे व्यवहार के  कारणों पर विचार करें  तो . पारिवारिक वातावरण ,बचपन से स्नेह का अभाव,ईर्ष्या द्वेष की भावना,अत्यधिक अंतर्मुखी होना ,किसी से अपनी समस्या शेयर न करना ,जीवन में विशेष सफल न हो पाना हीन भावना का शिकार होना आदि कारण और लक्षण नकारात्मक सोच के हैं
नकारात्मक सोच के रोजमर्रा वाले वाक्य
>>                  यह तो गधा, पागल बुध्दू है कभी नहीं पढ़ पायेगा।
>> भागों मत गिर जाओगे चोट लगने से हाथ-पैर टूट जायेंगे।
>> बायोलॉजी मत पढ़ो तुम जैसे कभी डाक्टर नहीं बन सकते।
>> अब तो बेकार है स्टेशन जाना गाड़ी तो मिल नहीं पायेगी।
>>                  सड़क पार मत करो एक्सीडेण्ट हो जायेगा, मर जाओगे।
>> बैट उठाकर मत जाओ कहीं तुम तेन्दुलकर नहीं बन रहे।
>> ऐसे संगीत से कभी भी तुम संगीतकार नहीं बन सकते (आस्कर विजेता ए.आर. रहमान को शुरुआत में कहा गया)।
>>                  जब स्टूडियो के दरवाजे लम्बे करा लेंगे तो तुमको फिल्मों में लगे लेंगे (अमिताभ बच्चन से एक प्रतिष्ठित डायरेक्टर ने कहा था)।
>> बेकार दिन-रात मेहनत कर रहे हो आई.ए.एस. बनना तुम्हारे बस का नहीं। इसके लिए लोहे के चने चबाने जैसे होता है।
>> दो लड़कियों के बाद तीसरे प्रसव से पहले कहा- मैं लिखकर दे सकता हूं कि इस बार भी लड़की ही होगी। लड़के तुम जैसी औरत क्या पैदा कर पायेगी।
>> लड़की को क्यों पढ़ा रहे हो, यह कहीं कलक्टरनी नहीं बनेगी।
>> होली पर ज्यादा मत भीगो, जुकाम, खांसी, बुखार आ जायेगा।
>>                  जाड़ों में आइसक्रीम खा रहे हो मरोगे, न्यूमोनिया हो जायेगा।
>>                  ज्यादा मत खाओ, बीमार पड़ जाओगे, उल्टी-दस्त हो जाएंगे।
>>                  देखना राजू आज तुम्हें झोली-बाबा से पकड़वाऊंगी।
>> इस बार पास नहीं हुए तो घर से बाहर निकाल दिए जाओगे।
>>                  इसको कांच का सामान मत दो इसके बस की नहीं, तोड़ देगा।
>>                  स्कूटर संभलकर चलाना, कहीं एक्सीडेण्ट न हो जाये। सड़कों पर अंधाधुंध भीड़ रहती है।
>>                  कहीं जाते समय बिल्ली रास्ता काट गयी, किसी ने छींक दिया, सुबह ही सुबह खाली बर्तन लेकर कोई आ गया, आज बृहस्पतिवार है, कटिंग नहीं करायेंगे आदि।
परिणाम
>>                  मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन, गुस्सा, जिसका शरीर के अन्य अंगों पर भी असर पड़ता है तथा व्यक्ति बिन बुलाई बीमारियों से प्रभावित होता रहता है।
>>                  ऐसे लोग अच्छी-भली मिलने वाली सफलता से दूर हो जाते हैं।
>>                  हर कदम पर सकारात्मक सोच वालों से पिछड़ते चले जाते हैं।
>>                  हीनभावना पैदा होकर डिप्रेशन में जाने लगते हैं।
>>                  ऐसी सोच इंसान को नकारा बना देती है।

नकारात्मक सोच से ऐसे बचें
सकाराकता अपने आपमें सफलता, संतोष और संयम लेकर आती है। व्यक्ति मूलतः सकारात्मक ही रहता है, परंतु कई बार नकारात्मक कदमों के कारण असफलता हाथ लग जाती है। इस असफलता का व्यक्ति पर कई तरह से असर पड़ता है। वह भावनात्मक रूप से टूटता है, वहीं इन सभी का असर उसके व्यक्तित्व पर भी पड़ता है। व्यक्तित्व पर असर लंबे समय के लिए पड़ता है तथा वह कई बार अवसाद में भी चला जाता है।
ऐसी स्थिति से बाहर आने में काफी लंबा समय भी लग सकता है। नकारात्मकता से आखिर कैसे बचे? क्योंकि प्रोफेशनल वर्ल्ड में हमें तरह-तरह के लोगों से मिलना पड़ता है। साथ ही अपने आपको प्रतिस्पर्धा के इस युग में आगे बनाए रखने के लिए भी तरह-तरह के जतन करना पड़ते हैं। ऐसे में हम अपने आपको सकारात्मक बनाए रखने के लिए स्वयं ही प्रयत्न कर सकते हैं।
परिस्थितियों को पहचानें
अक्सर हमारे मन में कोई भी आवश्यक कार्य या कोई बिजनेस मीटिंग के पूर्व नकारात्मक विचार आते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो? अगर मीटिंग सफल नहीं हुई तब? मेरा फर्स्ट इम्प्रेशन गलत पड़ गया तो फिर क्या होगा? इस प्रकार के प्रश्न मन में आते जरूर हैं। इनसे पीछा छु़ड़ाने के लिए इन बातों का अध्ययन करें कि आखिर ये प्रश्न कौन-सी परिस्थितियों में उपजते हैं। फिर इन समस्याओं से छुटकारा पाने की कोशिश करें, सकारात्मक सोच बनाए रखें।
इन परिस्थितियों में संभलना सीखें
जिन परिस्थितियों में नकारात्मक विचार आते हैं, उनसे सही तरीके से सामना करना सीखें। इस बात की तरफ ध्यान दें कि इन परिस्थितियों के दौरान अब आप पहले जैसी प्रतिक्रिया नहीं देंगे और इस दौरान संयमित होकर स्वयं के सफल होने की ही कामना स्वयं से करेंगे। आप ऐसा करेंगे तो आप देखेंगे कि जो नकारात्मक विचार आ रहे हैं वह धीरे-धीरे पॉजीटिव सोच मे बदल जाएंगे।
स्वयं से तर्क करना सीखें
नकारात्मकता का जवाब सकारात्मकता के अलावा कुछ भी नहीं हो सकता यह बात मन में बैठा लें। इसके बाद जो भी नकारात्मक विचार मन में आए उसके साथ तर्क करना सीखें और वह भी सकारात्मकता के साथ। जिस प्रकार से नकारात्मक विचार लगातार आते रहते हैं, ठीक उसी तरह से आप स्वयं से सकारात्मक विचारों के लिए स्वयं को प्रेरित करें और अपने प्रयासों में सफलता हासिल करें।
http://hindi.webdunia.com/news-career-gurumantra/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%9A-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A4%A8-%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80-1120119179_1.htm
अपनी नकारात्क सोच को बदलिए
हमें सदैव दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलने के बारे में सोचना चाहिए। हमे दूसरों के बजाय पहले खुद की सोच का सकारात्मक बनासन होगा। सकारात्मक सोच परिस्थितियों में ही नहीं दृष्टिकोण में बदलाव लाती है। नकारात्मक सोच कई घरों को बर्बाद कर चुकी है। नकारात्मक सोच के कारण हसंते खेलते वैवाहिक जीवन में दरार पैदा हो जाती है। जब कहीं पर भी कोई भी कुछ भी घटता हो तो उसे अपने साथ जोडकर न सोचें, कि आपके परिवार के सदस्य भी ऎसा ही करते हैं, जबकि ऎसा कु छ भी नहीं होता। अनेक महिलाएं पति के ऊपर बेवजह शक करती रहती हैं, जो भविष्य में दांपत्य की असुरक्षा का संकेत है ऎसी महिलाओं के लिए जरूरी है , कि वो सकारात्मक विचार रखें, अच्छा सोचेंगी, तो अच्छा व्यवहार कर पाएंगी। नकारात्मक सोचने पर बुरे परिणाम भुगतने पड सकते हैं। ध्यान रखिए विवाद ग्रस्त बातें मधुर मुस्कान से मिनटों में हल हो जाती हैं, जबकि आपका गरम स्वभाव जरा सी बात का भी बतंगड बना सकता है।
परिवर्तन: परिवर्तन संसार का नियम है। चाहे वह प्रकृ ति हो मनुष्य हो या समय, परिवर्तन तो होना ही है। कई बार हम अलग-अलग परिस्थितियों में खुद को बदलते रहते हैं लेकिन इस बदलाव के परिणाम भी अलग-अलग हो सकतेे हैं। कई बार यही बदलाव खुशी और उत्साह लाता है, तो कई बार अशांति और उदासी में डूबो देता है। परंतु यदि सामान्य जौर पर देखा जाए, तो बदलाव एक अवश्यभावी प्रक्रिया है। इसका अच्छा परिणाम तभी आता है, जब हम उसे केवल बाहरी तौर पर ही नहीं बल्कि आंतरिक तौर पर करें। यह आंतरिक परिवर्तन सकारात्मक होना चाहिए। जब हम गुणवत्ता वाली सोच सृजित करना शुरू करेंगे। धीरे-धीरे हमारे भीतर जागृति आती जाएगी। सकारात्मक अनुभूति के लिए सोच परिष्कृ त करें।
हावी न होने दें: कभी भी नकारात्मक विचारों को खुद पर हावी न होने दें।
दरअसल जब हम दूसरों के प्रति अपने दृष्टिकोण और सोच में सकारात्मक बदलाव लाएंगे, तो दूसरा हमारे प्रति नकारात्मक सोच ही नहीं सकता। मान लीजिए किसी के प्रति हम सकारात्मक सोच रहे हैं, और वह हमारे प्रति नकारात्मक सोच रहा है, पर यह प्रक्रिया ज्यादा देर तक स्थायी नहीं रह सकती । जरूर सामने वाला हमारी सकारात्मक सोच के प्रति नतमस्तक होगा और हमारे करीब आकर अपनापन हमसूस करेगा।
खुद में लाएं बदलाव: व्यक्ति से ही समाज का निर्माण होता है। व्यक्ति को दूसरों को बदलने से अच्छा है अपने अंदर बदलाव लाना , लेकिन लोग खुद को नहीं देखते बल्कि दूसरों को नसीहत का पाढ पढाते रहते हैं। इंसान के इसी दुष्टिकोण ने पारिवारिक, सामाजिक विघटन से लेकर अनावश्यक स्वार्थ संघर्ष और भ्रष्टाचार तक कई दुष्टप्रवृतियों को उत्पन्न किया है। छोटी-छोटी बातों पर लडाई,रोड रेज,संयुक्त परिवार की तो दूर की बात है एकल परिवारों में दांपत्य संबंधों तक का टूटना, रिश्वतखोरी, छोटी-छोटी बातों के निहायत निमA कोटि की चालाकियां ये सब हमारी नकारात्मक सोच का नतीजा है।
क्या करें: सबसे पहले यह जरूरी है, कि आप चीजों को किस नजरिये से देखते हैं, अगर आप मन से गरीब हैं तो आप जैसा गरीब कोई नहीं अगर आप सोचते हैं आपके पास खुशी है, प्यार है, परिवार है, दोस्त हैं, पॉजिटिव सोच है तो आप जैसा अमीर दुनियां में कोई नहीं। दिखावे से हमेशा दूर रहने का प्रयास करें। दूसरों को देखकर उनकी सही बातों को अपनाये, मगर गलत बातों पर उनकी होड करना आपके भविष्य के लिए सही नहीं। हर इंसान को अपने समाज के प्रति जिम्मेदारी निभानी चाहिए, आप अपने बहुत से छोटे-छोटे कार्यो द्वारा भी अपने सोशल कंसर्न लोगों तक पहुंचा सकते हैं। अक्सर लोग सामने वाले को दोष देने लगते हैं, कि वह क्यों नहीं हमारे मुताबिक चल रहा ! जबकि हम खुद को एक पल भी देखने समझने की कोशिश नहीं करते कि क्या हम ठीक कर रहे हैं? जब हम यह सोचते हैं, कि सामने वाला क्यों नही बदल रहा, तो नकारात्मकता हमारे ऊपर हावी होने लगती है, फिर हमारी पूरी की पूरी ऊर्जा व्यर्थ हो जाती है, जिसका असर व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। सोच बदलने से परिदृश्य बदल जाता है, सामने जो व्यक्ति है, वह तो वैसा ही है जैसा था। परिस्थितियां भी वैसी हैं, जैसी थीं। बस हम सोच में परिवर्तन लाकर स्थिति को सकारात्मक बना देते हैं। दूसरों के प्रति नकारात्मक सोच सिर्फ झगडे व कलह का ही कारण बनती है, संबंधों को बनाती नहीं बल्कि बिगाडती है, इसलिए नकारात्मक सोच से जितना जल्दी हो सके, बाहर आने का प्रयास करें।
http://www.aapkisaheli.com/articles/change-your-nagtive-thing.html
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मनचाही ज़िंदगी जीने की कुंजी सकारात्मक सोच
मार्च
वर्तमानयुग तेजी का युग है । यहां सभी दौड्ते-भागते नजर आते हैं । इसके पीछे वजह ये है कि हर इंसान दुसरों को पीछे छोड, खुद आगे बढना चाहता है । इस होड की सोच के चलते वह मानसिक अवसाद से ग्रस्त होने लगता है । वैज्ञानिकोंके द्वारा किये गये अध्ययन के मुताबिक निराशावादी सोच रखने वाले लोगों पर नकारात्मक गतिविधि का जल्दी असर होता है जिससे उनके दिमाग़ के एक ख़ास हिस्से में गतिविधियाँ तेज़ होती दिखाई देती है । इस हलचल के कारण रोगों का मुक़ाबला करने की उनकी क्षमता कमज़ोर हो जाती है । जो व्यक्ति सकारत्मक-सोच रखते हैं उनके शरीर की धमनियाँ खुशी के कारण सजग और सचेत रहती हैं ।
सोच का सबसे ज्यादा प्रभाव चेहरे पर पड़ता है । बडे-बुढे सच ही कह गये हैं कि जो जैसा सोचता है उसके विचार और ख़याल भी उसी दिशा में जाने लगते हैं । दूसरे लफ़्ज़ों में कहें तो आधे भरे गिलास को दोनों तरह से देखा जा सकता है यानी आधा गिलास खाली देखना या आधा गिलास भरा देखना वह व्यक्ति की सोच पर निर्भर है । शरीर पर रोगों के प्रभाव और सोच का गहरा संबंध है । अत्यधिक सोच के फलस्वरूप गैस अधिक मात्रा में बनती है और पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। सिर के बाल झड़ने लगते हैं शरीर कई रोगों का शिकार हो जाता है । यदि व्यक्ति प्रतिदिन रात्रि में सोते समय सकारात्मक भाव से स्वयं को प्रभावित करे, तो वह अनेक साध्य व असाध्य रोगों का सफल व स्थायी निवारण कर सकता है ।
सोच का सबसे ज्यादा प्रभाव चेहरे पर पड़ता है । चिंता और थकान से चेहरे की रौनक गायब हो जाती है । आँखों के नीचे कालिख और समय से पूर्व झुर्रियाँ इसी बात का सबूत हैं । शरीर में साइकोसोमैटिक प्रभाव के कारण स्वास्थ्य बनता है और बिगड़ता है । एक अमरीकी पत्रिका प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द नेशनल एकेडेमी ऑफ़ साइंस ने एक अध्ययन के बाद नतीजा निकाला है कि दिमाग़ में किसी भी नकारात्मक गतिविधि से आदमी की रोगों से लड़ने की ताक़त कमज़ोर हो जाती है ।
देखा जाये तो इंसान की सबसे मूल्यवान अनुभूति सोच ही है । चारों तरफ़ व्याप्त जीवन के विहंगम दृश्य को देखने की क्षमता की  देन भी उसकी सोच ही है । गीत और भाषा की ध्वनियाँ सुनने की शक्ति, भौतिक संसार का आनंद व अनुभव , समृद्घ प्रकृति की मधुरता और सौंदर्य का स्वाद व गंध लेने की इंसान की योग्यता उसकी सोच पर ही टिकी है । जो व्यक्ति हर नये दिन का स्वागत उत्साह, आत्मविश्वास और आशा के साथ करता है  उसे ख़ुद पर भरोसा होता है और उस जीवन पर भी, जिसे जीने का विकल्प उसने चुना है । ऐसी सोच रखनेवाले लोग दूसरों को प्रेरित करने में कुशल होते हैं और दूसरों की उपलब्धियों पर ख़ुश होते हैं । वे दूसरों का ध्यान रखते हैं, उनके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं और बदले में उनके साथ भी अच्छा व्यवहार किया जाता है ।
मस्तिष्कदृष्टि द्वारा वे जानते हैं कि मेहनत, चुनौती और त्याग जीवन के हिस्से हैं । वे अपने दु:ख को, खुद के विकास में बदल लेते हैं । ऐसे लोग डर का सामना करके उसे जीत लेते हैं और दर्द को झेलकर उसे हरा देते हैं । उनमें अपने दैनिक जीवन में सुख पैदा करने की क्षमता होती है ; जिससे उनके आसपास रहने वाले लोग भी सुखी हो जाते हैं । उनकी निश्छल मुस्कान आंतरिक शक्ति और जीवन की सकारात्मक शैली का प्रमाण होती है ।
यह तय है कि सही दिशा में चलने पर हमारा जीवन  रोमांचक, संतुष्टिदायक और सफल हो सकता है, कतई दिशाहीन जीवन नहीं हो सकता । आप अपनी मनचाही ज़िंदगी जीने में सफल हो पायेंगे या नहीं, यह अब पूरी तरह आप पर निर्भर है । मनचाही  ज़िंदगी  जीने की कुंजी आपकी खुद की  सकारात्मक सोच ही है ।
http://astitva53.wordpress.com/2012/03/30/%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%97%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%81/
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अपनाएं सकारात्मक व्यवहार
व्यवित की प्रवृत्ति से ही उसके वास्तविक गुणों की गणनाहोती  है । प्रवृत्ति में ही आशावाद या निराशावाद के बीज छिपे होते हैं । समसामयिक परिस्थितियों के प्रति व्यवित का व्यवहार व नजरिया एक खुश और नाखुश व्यवित के बीच सबसे बड़ा अंतर पैदा करता है । यह सही है कि हर समय हर कोई खुश नहीं रह सकता है । लेकिन कठिन से कठिन परिस्थितियों से भी खुशियां निचोड़ लेने की क्षमता आप में होनी ही चाहिए । निराशावादी लोगों को विभिन्न वस्तुओं या परिस्थितियों के प्रति नजरिए में परिवर्तन लाना चाहिए। आए दिन हम सभी किसी न किसी विषय पर नाराज तो होते ही हैं। कभी-कभी इस कारण पूरा दिन खराब हो जाता है लेकिन बेहतर सोच व समय के साथ भंयकर प्रतीत होने वाली घटनाएं भी छोटी लगने लगती हैं । परिवार में किसी प्रिय की मृत्यु या कोई बड़ी दुर्घटना हो जाने पर ऐसा लगता है कि मानो पहाड़ टूट गया हो किंतु समय गुजरने के साथ-साथ इसका प्रभाव कम होता जाता है। धीरे-धीरे हम इस बात को स्वीकार करने लगते हैं कि इस तरह की घटनाओं को टाला नहीं जा  सकता ।
एक बुरा बॉस या झगड़ालू पत्नी या पति आपको थोड़े समय के लिए परेशान कर सकते हैं । लेकिन जब आप जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया अपना लेते हैं तो किसी भी कठिन परिस्थिति से निकलना मुश्किल नहीं होता । प्रतिकूल परिस्थितियों निपटने का अच्छा तरीका यह है कि आप सकारात्मक और विजय प्राप्त करने वाले विचारों से काम लें । सकारात्मक विचारों पर अडिग रहने का मतलब होता है आधी जंग जीत लेना । सकारात्मक विचारों को अपनाकर ही सफलता और असफलता के बीच के अंतर को पाट सकते हैं। जरूरी नहीं है कि हर परिस्थितियों में सफलता ही मिले । लेकिन हर परिस्थिति से कुछ न कुछ लाभ तो लिया ही जा सकता है । सकारात्मक व्यवहार हमें सभी तरह की परिस्थिति से वास्तविक मूल्यांकन की क्षमता प्रदान करता है । वहीं दूसरी तरफ नकारात्मक सोच बड़ी-बड़ी बाधाएं खड़ी कर देता  है । कई बार ये बाधाएं वास्तविक होती हैं तो कई बार मात्र काल्पनिक ।

नकारात्मक विचारों से स्वयं के साथ-साथ अपने सगे-संबंधियों को भी मानसिक ठेस पहुंचती है । इस कारण इससे बचने का उपाय करना चाहिए । सकारात्मक व्यवहार से ही हम इस तरह की बातों से पीछा छुड़ाते हुए स्वयं को नई परिस्थितियों के लिए तैयार कर सकते  हैं । इसलिए स्वयं को मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए । मानसिक रूप से मजबूत व्यवित प्रतिकूल परिस्थितियों में भी स्वयं को बिल्कुल सुरक्षित रखता है । इस तरह के व्यवित न केवल स्वयं को किसी घटना का शिकार होने से बचाते हैं बल्कि उन समस्याओं पर विजय भी प्राप्त करते हैं ।

हार न मानें
     हर युवा का एक सपना होता है, उसे पूरा करने के लिए बहुत हद तक वह कोशिश भी करता है । कुछ के सपने पूरे हो जाते हैं, कुछ सपनों में ही खो जाते हैं । सपना तो अवश्य ही देखें, लेकिन उन सपनों को पूरा करने से पहले ही हार मान लेना या उन्हें बीच में छोड़ देना सफलता की दूरी कई कदम और बढ़ा देता है । सफलता के लिए कुछ बातों पर ध्यान दें ।
सपनों को साकार करने से हार न माने
     अपनी सोच को सही तरीके से सपनों को पूरा करने के लिए अमल में लाने का प्रयास करें । हर व्यवित के अपने सपने होते हैं, जो बहुत महत्वपूर्ण होते हैं । एक अच्छी सोच के बावजूद डरते हैं कि कहीं लोग हम पर हंसेंगे, यह जानकर आश्चर्य होगा कि ज्यादातर लोग अपने सपने इसलिए नहीं पूरे कर पाते क्योंकि वे उनके टूट जाने या पूरा न हो पाने के डर से परेशान रहते हैं । युवाओं को स्वयं से कहना होगा कि उनमें सपनों को पूरा करने की क्षमता है और आप उन्हें पूरा होता देखेंगे ।
अपनी थकान से हार न मानें (इसमे मनीषा की कहानी लिखनी है। )
     हर समय काम करने के लिए खुद को मजबूर न करें । युवाओं को जीवन में संतुलन का विशेष ध्यान रखना चाहिए । अगर लगातार स्वयं से कठोरता से काम लेंगे तो जल्दी ही थक जाएंगे । इससे आपकी कार्य क्षमता में गिरावट आने लगेगी और काम करते समय गलत निर्णय लेने से भी कार्य क्षमता प्राय: समान होती है । परन्तु जो युवा अपने आप को थका मान लेता है, वह उतना काम नहीं कर पाता, जितना उसे करना चाहिए । इसलिए युवाओं को अपनी थकान से हार नहीं माननी चाहिए ।
अपने तनाव से हार न मानें
     काम के दबाव में थोड़ा-बहुत तनाव होना अवश्यंभावी है । यदि आपके कुछ लक्ष्य सपने और उद्देश्य हैं और सब कुछ उनके विपरीत हो रहा है तो आप तनाव महसूस करने लगते   हैं । इस तनाव की स्थिति से निकलने के लिए आपको बस इतना करना है कि आप अपने काम पर और खुद पर विश्वास रखें । आवश्यकता हो तो थोड़ा तनाव मुक्त होने का प्रयास करें और किसी और काम में मन लगाएं ।
अपनी निगेटिव इमेज से हार न मानें
     निगेटिव इमेज कभी-कभी आपकी सफलता में बाधा बनकर सामने आती है, जो आपके सपनों और उद्देश्य को प्रभावित करती है । आप काम आरम्भ करने से पहले ही निराश हो जाते है । अपनी छवि के बारे में यह सोच स्वयं आपके द्वारा विकसित की गई है, जिसे केवल आप अनुभव करते हैं । ऐसे समय में आप खुद से कहने लगते हैं कि मैं अच्छा नहीं  हूं । मुझे सही लोगों की पहचान नहीं आदि……। इन परिस्थितियों में आपको अपनी सोच नकारात्मक से सकारात्मक में बदलने का प्रयास करना चाहिए, जिससे आप हर कार्य में निपुण हो जाएंगे ।  
      बस एक ही बात कहेंगे कि ऐसा कोई काम नहीं है, जो मैं नहीं कर सकता । स्वयं को पहचानिए, उस क्षेत्र को पहचानिए, जिसमें आप जाना चाहते हैं । महत्वाकांक्षा और पूरी लगन से उसे पूरा करने का प्रयास करें ।
अपनी गलतियों से हार न मानें
     आपके कार्य की कई बार आलोचना की जाती है । यह आलोचना आपको अवसर प्रदान करती है अपनी कार्य क्षमता में सुधार लाने का । गलतियां सभी से होती हैं, मगर सफलता उन्हीं को मिलती है, जो गलतियों से सीखते हैं । जीवन में आपको ऐसे बहुत से लोग मिलेंगे, जो आपकी सदैव आलोचना करेंगे । वे आलोचना करने के लिए ही बने हैं । इन सभी बातों को नजरंदाज करते हुए अपने काम को साबित करने का प्रयास करें । अपने ऊपर गलतियां हावी न होने दें । आगे बढ़कर काम सीखने और उस पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास करें ।
अपने असफल नेतृत्व से हार न मानें
     सफलता प्राप्त करने के लिए नेतृत्व का गुण आवश्यक है, जिससे किसी कार्य को करने की पहल कर सकें । साथ ही उस पर नियंत्रण रखें और उस कार्य को बीच में न छोड़ें । नेतृत्व अच्छे बुरे की समझ देता है और विपरीत परिस्थितियों में नियंत्रण करने में सहयोग देता है, जिससे हार का मुंह न देखना पड़े । जीवन में ऐसे ही मोड़ आते हैं, जब हम परिस्थितियों और प्रयासों के बीच संतुलन स्थापित नहीं कर पाते और ऐसे में हमारा नेतृत्व कभी-कभी असफल हो जाता है । युवाओं को याद रखना चाहिए कि कोई भी कम्पलीट नहीं होता है । यदि कभी असफलता हाथ भी लगे तो समस्या को गंभीर होने से रोकने का प्रयास करें और कार्य को पूरा करने की सामर्थ्य रखें । यही वास्तविक नेतृत्व है ।
भविष्यवाणी से हार न मानें
     कभी-कभी हम अपने राशिफल में की गई विपरीत भविष्यवाणी को पढ़कर निराश हो जाते हैं । इन बातों पर विश्वास करने की जगह खुद पर और अपने सपनों पर यकीन करें । आपके अन्दर अपने भाग्य का निर्माण करने की क्षमता होती है । गिलास में आधे भरे पानी को देखें न कि आधे खाली गिलास को ।’ ‘मैं कर सकता हूंबस इसे याद रखें ।  आपको सफलता प्राप्त करने में कोई नहीं रोक सकता है । युवाओं को इन बातों पर ध्यान देना चाहिए ।
बचे वाकयुद्ध से
विद्वानों का कहना है कि यदि आपके बारे में कोई गलत बात कही जाती है और इसमें अगर सत्यता हो तो सब से पहले हमें अपने आप में सुधार करना चाहिए । यदि यह असत्य है तो इसे हंस कर टाल देना चाहिए । जब हताशा से भरे लोग आप पर बार-बार हमला करते हों तो ऐसी स्थिति में खुद पर काबू करना मुश्किल हो जाता है । एकाग्र चित्त और उत्साहित रहना भी कठिन हो जाता है । विभिन्न तरह के लोग अपने द्वारा किये गये व्यवहार या असहयोगात्मिक शब्दों के प्रति अलग-अलग सिद्धान्त अपनाते हैं । ऐसा आपके परिवार और दोस्तों के बीच भी होता है । यह सोचना अव्यवहारिक ही होगा कि आपके सपने को पूरा करने में सभी लोग आपकी सहायता करेंगे । जरूरी यह है कि आप किसी से सहयोग न मिलने की स्थिति के लिये सदा तैयार रहें । जीवन की कठिन परिस्थितियों के लिए आपको शमिर्ंदा होने की जरूरत नहीं है । यदि कोई आपको नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो इससे परेशान हुए बिना ऐसी बातों को नजर अंदाज कर दें । इन बातों पर ध्यान देने की बजाय अपने दृष्टिकोण को आगे रखने का प्रयास करें । आपको अपनी लड़ाई के हथियार चुनते समय बेहद सावधानी और बुद्धिमानी से कदम उठाने चाहियें । जो बातें आपके सपनों की पूर्ति करने में बाधक हैं या आपके आत्मविश्वास को कमजोर करते हों, ऐसी नकारात्मक चीजों को खोज कर अपने सामने लाएं । ऐसा करते समय किसी गलत चीज को न पकड़ लें इस बात को ध्यान रखें । एक अधिकारी अपने बॉस और सहकर्मियों से लड़ते रहते थे । इस कारण किसी अच्छे काम को उन्हें क्रेडिट नहीं मिलता था । तब उनके बॉस ने सलाह दी कि कभी-कभी बड़े युद्ध जीतने के लिए छोटी लड़ाईयां हार जाना बेहतर होता है ।
      अपने सपने को जीवंत बनाने के लिए इसके आत्मीय पहलूओं  का ध्यान रखें । अपनी योग्यता तथा शक्ति को पहचाने । यदि कोई आपकी सफलता से जलता है या क्रोधित होता है तो होने दीजिए क्योंकि यह एक स्वाभाविक मानवीय प्रवृति है । इस तरह के लोग जो करना चाहते हैं उन्हें करने दीजिए, ऐसे लोग दूसरों की गलतियां निकालने या गप हांकने में समय बर्बाद करने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते ।