सकारात्मक सोच की शक्ति
the-power-of-positive-thinking
अभिप्राय मात्र
इतना है कि उत्तम स्वास्थ्य का आधार सकारात्मक सोच है. सोच और स्वास्थ्य एक-दूसरे
के पूरक हैं. मनुष्य की सोच का उसके स्वास्थ्य पर बहुत गहरा असर पड़ता है। इंसान
जैसा सोचता है, उसका शरीर वैसी ही प्रतिक्रिया करता
है.सकारात्मक सोच से व्यक्ति प्रसन्न रहता है . भोजन और आचार विचार का प्रभाव
व्यक्ति के तन और मन पर होता है, यह एक सर्व विदित तथ्य है ,परन्तु व्यक्ति द्वारा प्रयोग किये
शब्द भी उसके तन , मन
को प्रभावित करते हैं.इसी प्रकार सोच भी व्यक्ति के तन मन और जीवन को प्रभावित करती है,इस सत्य को व्यवहार में नहीं समझ पाते.
सच्चाई यह है की संपूर्ण मानव जीवन में
भाषा का बहुत महत्व है. इसीलिये बचपन से सिखाया जाता है कि शुभ शुभ बोलो
.कहा जाता है कि 24 घंटे में एक बार
मनुष्य की वाणी में सरस्वती जी का वास होता है अतः अशुभ बोलेंगें तो अशुभ होगा. ये
संस्कार यही धारणा बनाते हैं कि सकारात्मक
सोचो और सकारात्मक करो .बचपन से परिवारों में माननीय बुजर्ग यही शिक्षात्मक कथाएं
सुनाते हैं कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है स्वयम उसी में गिरता है,इन सब के पीछे एक ही उद्देश्य
है.सकारात्मक सोच का पोषण.क्योंकि ये यथार्थ है कि यदि किसी के लिए बुरा सोचते हैं
तो अपना बुरा अवश्य होता है जो विकृत सोच के परिणाम के रूप में मानव के तन मन को प्रभावित करते हैं. इसके लिए
आवश्यकता है आज भी स्वयम सकारात्मक होने की और
बचपन से ही बच्चों के संस्कारों के बीजारोपण की .बच्चों के साथ
सकारात्मक व्यवहार करते हुए उनको ये समझाने की कि उनको क्या करना चाहिए,न कि क्या नहीं करना है. वैज्ञानिक रूप
से विचार करने पर भी व्यक्ति के शरीर में
कुछ हार्मोन्स होते हैं जो उसको स्वस्थ,प्रसन्नचित और उत्साह से परिपूर्ण रखते
हैं.इन हार्मोन्स के नाम हैं
Serotonin:: एक ऐसा तत्व है जो तनाव से मुक्त रखता
है और उत्तम पौष्टिक भोजन,व्यायाम तथा सूर्य के प्रकाश से
प्राप्त होता है.
Endorphins: व्यक्ति को आनंद
का अनुभव कराता है.चिंताओं को दूर भगाता है और शरीर में होने वाली पीडाओं
का अहसास कम कराने में सहायक होता है.
Dopamine: मानसिक रूप से तंत्रिका तन्त्र को अलर्ट
रखने में रामबाण है.
.Ghrelin: ये भी व्यक्ति के तनाव को कम कर पूर्णतया विश्राम की स्थिति में
पहुंचाने में सहायक है. उपरोक्त कुछ
अन्य हार्मोन्स ही मानव जीवन को तनाव रहित आनंद से परिपूर्ण बनाते हैं
और सकारात्मक सोच को पुष्ट बनाते हैं.और पौष्टिक भोजन,योगासन ,यथासंभव शुद्ध वायु और सूर्य की रौशनी ही इनके निर्माण में योगदान
देते हैं,जो स्वस्थ जीवन का आधार हैं. ध्यान ,योग से ही इन हार्मोन्स का स्तर संतुलित हो सकता है और
व्यक्ति में मानवोचित गुणों का विकास हो
सकता है.जिनकी सहायता से वह सफल आनन्दपूर्ण जीवन
जी सकता है. आज के इस भागमभाग के जीवन में हंसना जो सबसे बड़ा टोनिक है
स्वस्थ जीवन के लिए लुप्त हो रहा है
हमें सदैव
दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलने के बारे में सोचना चाहिए। हमे दूसरों के
बजाय पहले खुद की सोच को सकारात्मक बनाना होगा। सकारात्मक सोच परिस्थितियों में
ही नहीं दृष्टिकोण में बदलाव लाती है। नकारात्मक सोच कई घरों को बर्बाद कर चुकी
है। नकारात्मक सोच के कारण हसंते खेलते वैवाहिक जीवन में दरार पैदा हो जाती है। जब
कहीं पर भी कोई भी कुछ भी घटता हो तो उसे अपने साथ जोडकर न सोचें, कि आपके परिवार के सदस्य भी ऎसा ही
करते हैं, जबकि ऎसा कु छ भी नहीं होता। अनेक
महिलाएं पति के ऊपर बेवजह शक करती रहती हैं, जो
भविष्य में दांपत्य की असुरक्षा का संकेत है ऎसी महिलाओं के लिए जरूरी है , कि वो सकारात्मक विचार रखें, अच्छा सोचेंगी, तो अच्छा व्यवहार कर पाएंगी। नकारात्मक
सोचने पर बुरे परिणाम भुगतने पड सकते हैं। ध्यान रखिए विवाद ग्रस्त बातें मधुर
मुस्कान से मिनटों में हल हो जाती हैं, जबकि
आपका गरम स्वभाव जरा सी बात का भी बतंगड बना सकता है।
परिवर्तन:
परिवर्तन संसार का नियम है। चाहे वह प्रकृति हो मनुष्य हो या समय, परिवर्तन तो होना ही है। कई बार हम
अलग-अलग परिस्थितियों में खुद को बदलते रहते हैं लेकिन इस बदलाव के परिणाम भी
अलग-अलग हो सकतेे हैं। कई बार यही बदलाव खुशी और उत्साह लाता है, तो कई बार अशांति और उदासी में डूबो
देता है। परंतु यदि सामान्य जौर पर देखा जाए, तो
बदलाव एक अवश्यभावी प्रक्रिया है। इसका अच्छा परिणाम तभी आता है, जब हम उसे केवल बाहरी तौर पर ही नहीं
बल्कि आंतरिक तौर पर करें। यह आंतरिक परिवर्तन सकारात्मक होना चाहिए। जब हम
गुणवत्ता वाली सोच सृजित करना शुरू करेंगे। धीरे-धीरे हमारे भीतर जागृति आती
जाएगी। सकारात्मक अनुभूति के लिए सोच परिष्कृत करें।
हावी न होने
दें: कभी भी नकारात्मक विचारों को खुद पर हावी न होने दें।
दरअसल जब हम
दूसरों के प्रति अपने दृष्टिकोण और सोच में सकारात्मक बदलाव लाएंगे, तो दूसरा हमारे प्रति नकारात्मक सोच ही
नहीं सकता। मान लीजिए किसी के प्रति हम सकारात्मक सोच रहे हैं, और वह हमारे प्रति नकारात्मक सोच रहा
है, पर यह प्रक्रिया ज्यादा देर तक स्थायी
नहीं रह सकती । जरूर सामने वाला हमारी सकारात्मक सोच के प्रति नतमस्तक होगा और
हमारे करीब आकर अपनापन हमसूस करेगा।
खुद में लाएं
बदलाव: व्यक्ति से ही समाज का निर्माण होता है। व्यक्ति को दूसरों को बदलने से
अच्छा है अपने अंदर बदलाव लाना , लेकिन
लोग खुद को नहीं देखते बल्कि दूसरों को नसीहत का पाढ पढाते रहते हैं। इंसान के इसी
दुष्टिकोण ने पारिवारिक, सामाजिक विघटन से लेकर अनावश्यक
स्वार्थ संघर्ष और भ्रष्टाचार तक कई दुष्टप्रवृतियों को उत्पन्न किया है।
छोटी-छोटी बातों पर लडाई,रोड रेज,संयुक्त परिवार की तो दूर की बात है एकल परिवारों में दांपत्य
संबंधों तक का टूटना, रिश्वतखोरी, छोटी-छोटी बातों के निहायत निमA कोटि की चालाकियां ये सब हमारी
नकारात्मक सोच का नतीजा है।
क्या करें: सबसे
पहले यह जरूरी है, कि आप चीजों को किस नजरिये से देखते
हैं, अगर आप मन से गरीब हैं तो आप जैसा गरीब
कोई नहीं अगर आप सोचते हैं आपके पास खुशी है, प्यार
है, परिवार है, दोस्त हैं, पॉजिटिव सोच है तो आप जैसा अमीर
दुनियां में कोई नहीं। दिखावे से हमेशा दूर रहने का प्रयास करें। दूसरों को देखकर
उनकी सही बातों को अपनाये,
मगर गलत बातों पर उनकी होड करना आपके
भविष्य के लिए सही नहीं। हर इंसान को अपने समाज के प्रति जिम्मेदारी निभानी चाहिए, आप अपने बहुत से छोटे-छोटे कार्यो
द्वारा भी अपने सोशल कंसर्न लोगों तक पहुंचा सकते हैं। अक्सर लोग सामने वाले को
दोष देने लगते हैं, कि वह क्यों नहीं हमारे मुताबिक चल रहा
! जबकि हम खुद को एक पल भी देखने समझने की कोशिश नहीं करते कि क्या हम ठीक कर रहे
हैं? जब हम यह सोचते हैं, कि सामने वाला क्यों नही बदल रहा, तो नकारात्मकता हमारे ऊपर हावी होने
लगती है, फिर हमारी पूरी की पूरी ऊर्जा व्यर्थ
हो जाती है, जिसका असर व्यक्तित्व को प्रभावित करता
है। सोच बदलने से परिदृश्य बदल जाता है, सामने
जो व्यक्ति है, वह तो वैसा ही है जैसा था।
परिस्थितियां भी वैसी हैं,
जैसी थीं। बस हम सोच में परिवर्तन लाकर
स्थिति को सकारात्मक बना देते हैं। दूसरों के प्रति नकारात्मक सोच सिर्फ झगडे व
कलह का ही कारण बनती है, संबंधों को बनाती नहीं बल्कि बिगाडती
है, इसलिए नकारात्मक सोच से जितना जल्दी हो
सके, बाहर आने का प्रयास करें।
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सकारात्मक सोचिए
स्वस्थ रहिए
सोच का
स्वास्थ्य से संबंध होती हैं। अच्छा, क्रियात्मक, सकारात्मक पॉजीटिव सोच, अच्छे स्वास्थ्य की जनक है। नकारात्मक, गलत विचार तन्दुरुस्ती पर गलत असर
डालते हैं।
आपके चारों ओर
नकारात्मक बातें करने वाले भी होते हैं। सकारात्मक कार्य करना या बोलने वाले विरले
ही मिलेंगे। सोच लें कि दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका तोड़ न हो।
कमी है तो बस एक
अच्छी सोच की। नकारात्मक वाक्य हमारे बढ़े कदमों को रोकने की कोशिश करते हैं, लेकिन अच्छी सोच व दृढ़ निश्चयी व्यक्ति
के लिए कोई भी समस्या असंभव नहीं।
अच्छी सोच वाली
बातें
>> तुम तेजस्वी, बुध्दिजीवी हो तुम ही पढ़ोगे। कोशिश करो, चींटी को देखो न थकने, न हारने वाला जीव है।
>> भागो लेकिन संभलकर पैर जमाकर, देखकर।
>> बायोलॉजी, मैथ्स, कॉमर्स तुम जैसे ही पढ़ते हैं, वे
कोई और नहीं होते। तुम में से ही डाक्टर, सी.ए., इंजीनियर बनते हैं।
>> स्टेशन जरूर जाओ, गाड़ी लेट भी तो हो सकती है, प्रयास जरूर करो।
>> सड़क पार करो लेकिन दोनों ओर देखकर। सभी
पार करते हैं उन्हीं में से तुम भी एक हो।
>> तेन्दुलकर ने कभी सपने में भी ऐसी
सफलता के बारे में कल्पना नहीं की होगी।
>> ए.आर. रहमान जैसे साधारण व्यक्ति ने
कभी ऐसी शोहरत की सोची भी नहीं होगी।
>> अमिताभ बच्चन आज फिल्मी दुनिया का
स्तंभ हैं।
>> आई.ए.एस. बनना कठिन जरूर है, लेकिन परिश्रम के सामने असंभव नहीं।
>> लड़की-लड़के के बारे में आज तक कोई भी
निश्चित नहीं बता पाया है। केवल सभी अनुमानित बात करते हैं।
>> लड़की-लड़का आगे चलकर कलेक्टर बनेंगे या
बैरिस्टर भविष्य के गर्भ में छिपा है। हां. इतना जरूर है कि मजाक उड़ाने वाले शब्द
कई बार सच्चे भविष्य की बात कह जाते हैं।
>> होली पर असंख्य भींगते हैं। क्या सभी
बीमार हो जाते हैं। हां जरा संभालकर खेलना। ज्यादा देर तक भींगे कपड़ों में न रहें।
>> सच्चाई तो यह है कि जाड़ों में ही ठण्डी
चीजें खाना चाहिए। बीमारी या न्यूमोनिया का कारण ठण्ड नहीं, बल्कि बैक्टीरिया होता है, वरना गर्मियों में न्यूमोनिया क्यों
होता है।
>> झोली-बाबा या पुलिस से पकड़वाना या
डाक्टर से हुई लगवाना आदि शब्द बच्चे में डर पैदा करते हैं तथा भरोसा कम करते हैं।
>> पास न होने पर घर से निकालने की धमकी
बच्चे के दिमाग पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। इसके परिणाम घातक हो सकते हैं। बच्चे पर
भरोसा कर उसका हौसला बढ़ाएंगे, परिणाम
भी अच्छे आयेंगे।
>> कांच के बर्तन एक बार देकर देखिए।
इनसे बच्चे का विश्वास बढ़ेगा और दिमाग सकारात्मक आदेश देगा। क्या बड़ों से कांच
नहीं टूटता।
>> सड़क पर अनेक लोग वाहन चलाते हैं क्या
सभी के एक्सीडेंट हो जाते हैं। सड़क पर चलने से तुम भी भीड़ का भाग बन जाओगे। हां
जरा संभालकर तथा नियमों को ध्यान रख वाहन चलाना चाहिए।
>> बिल्ली रास्ता काट गयी आदि हीनभावना
अशिक्षा की निशानी है, जिससे अनेक बनने वाले काम समय पर नहीं
हो पाते। समय किसी का इंतजार नहीं करता। उसी के सब आधीन हैं।
ऐसी सोच से बचने
के लिए क्या करें?
>> ऐसी बातें करने तथा विचारों वाले
व्यक्ति से दूर रहें।
>> अपनी जुबान से किसी को गलत न बोलें।
इससे आपका खुंदक वाला व्यवहार पता चलता है। इससे स्वयं को कोई फायदा नहीं होने
वाला। 24 घंटे में किसी क्षण निकले शब्द सच में बदलकर अहित कर सकते हैं।
>> अपनार् कत्तव्य केवल काम करना है, परिणाम उस दिव्य दृष्टिकर्ता के हाथ
है।
>> सकारात्मक सोच के सामने सारी रुकावटें
बौनी होती जाती है।
>> मतलबी बातें बनाकर फालतू बैठने वालों
से परहेज करें। उनके पास समय की कीमत नहीं। वह आपका कीमती समय भी जाया करेंगे।
>> अच्छा सोचो, अच्छा करो, अच्छा ही बोलो स्वयं स्वस्थ रहें तथा
औरों को भी स्वस्थ रखने में मददगार बनें।
समीक्षा
>> नकारात्मक सोच वाले लोगों से दूर रहें।
>> सकारात्मक सोच वालों से प्रेरणा लेकर
अधिक समय उनके साथ गुजारें।
>> अच्छा सोंचे, अच्छा करें, अच्छा बोलें, स्वस्थ रहें।
>> दुनिया में कोई ताला नहीं जिसकी परिश्रम
व दृढ़ निश्चय रूपी चाभी न होना।
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सकारात्मक सोच वज़न घटाने में भी सहायक
लंदन। वजन घटाने
के लिए लोग पता नहीं कितने उपाय करते है, जिनमे
वह पूरी तरह सफल भी नहीं हो पाते। अगर सही मायने मे वजन कम करना है तो ज्यादा कुछ
ना करके सबसे पहले अपने सोचने का नजरिया बदलना होगा। इसके लिए खुद को सकारात्मक
ढंग से देखने व संतुलित आहार लेने से वजन घटाने में मदद मिल सकती है।
मोटापा शरीर में
मधुमेह और ह्रदय की कई बीमारियां बढाता है, जो
उम्र को भी काफी कम कर देता है। लिस्बन तकनीकि विश्वविद्यालय के शोधकर्ता पेड्रो
जे. टैक्जीरा के अनुसार, हमारे शोध के परिणाम दिखाते हैं कि
सुधरते शारीरिक गठन और खान-पान के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव में सम्बंध पाया
जाता है।
स्पेन के
टैक्निकल व ब्रिटेन के बैंगोर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अधिक वजन और मोटापे
से ग्रस्त महिलाओं को एक साल में वजन घटाने के कार्यक्रम में शामिल किया। शोध में
शामिल आधी महिलाओं को अच्छी सेहत, तनाव-प्रबंधन
और अपनी देखभाल करने की सामान्य जानकारियां दी गई। दूसरी ओर अन्य महिलाएं 30 हफ्ते
के व्यायाम, शारीरिक गठन सुधारने और वजन घटाने में
आने वाली व्यक्तिगत बाधाऔं को दूर करने जैसे विषयों पर आयोजित सामूहिक सत्रों में
सम्मिलित हुई।
दूसरे समूह की
महिलाओं ने पाया कि उनकी अपने शरीर के बारे में सोच में सुधार आया है और शारीरिक
आकार के बारे में उनकी चिंताएं कम हुई है। पहले समूह की तुलना में ये महिलाएं अपने
खाने की आदतों के बारे ज्यादा सजग थीं और अधिक वजन घटा पाईं। मैं
खुद उदाहरण हूँ
http://hindi.pardaphash.com/news/680618/680618.html
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सकारात्मक सोच से
बदल जाता
है
जीवन
आप सब ने नकारात्मक
और सकारात्मक सोच के बारे में न केवल ढेर सारे लेख ही पढ़े होंगे, बल्कि जीवन-प्रबंधन से जुड़ी छोटी-मोटी
और मोटी-मोटी किताबें भी पढ़ी होंगी। जब आप इन्हें पढ़ते हैं, तो तात्कालिक रूप से आपको सारी बातें
बहुत सही और प्रभावशाली मालूम पड़ती हैं और यह सच भी है। लेकिन कुछ ही समय बाद
धीरे-धीरे वे बातें दिमाग से खारिज होने लगती हैं और हमारा व्यवहार पहले की तरह ही
हो जाता है।
इसका मतलब यह
नहीं होता कि किताबों में सकारात्मक सोच पर जो बातें कही गई थीं, उनमें कहीं कोई गलती थी। गलती मूलतः
हममें खुद में होती है। हम अपनी ही कुछ आदतों के इस कदर बुरी तरह शिकार हो जाते
हैं कि उन आदतों से मुक्त होकर कोई नई बात अपने अंदर डालकर उसे अपनी आदत बना लेना
बहुत मुश्किल काम हो जाता है लेकिन असंभव नहीं। लगातार अभ्यास से इसको आसानी से
पाया जा सकता है।
हम महसूस करते
हैं कि हमारा जीवन मुख्यतः हमारी सोच का ही जीवन होता है। हम जिस समय जैसा सोच
लेते हैं, कम से कम कुछ समय के लिए तो हमारी
जिंदगी उसी के अनुसार बन जाती है। यदि हम अच्छा सोचते हैं, तो अच्छा लगने लगता है और यदि बुरा
सोचते हैं, तो बुरा लगने लगता है। इस तरह यदि हम
यह नतीजा निकालना चाहें कि मूलतः अनुभव ही जीवन है, तो शायद गलत नहीं होगा।
आप थोड़ा सा समय
लगाइए और अपनी जिंदगी की खुशियों और दुःखों के बारे में सोचकर देखिए। आप यही
पाएंगे कि जिन चीजों को याद करने से आपको अच्छा लगता है, वे आपकी जिंदगी को खुशियों से भर देती
हैं और जिन्हें याद करने से बुरा लगता है, वे
आपकी जिंदगी को दुखों से भर देती हैं।
आप बहुत बड़े
मकान में रह रहे हैं लेकिन यदि उस मकान से जुड़ी हुई स्मृतियां अच्छी और बड़ी नहीं
हैं तो वह बड़ा मकान आपको कभी अच्छा नहीं लग सकता। इसके विपरीत यदि किसी झोपड़ी में
आपने जिंदगी के खूबसूरत लम्हे गुजारे हैं, तो
उस झोपड़ी की स्मृति आपको जिंदगी का सुकून दे सकती हैं।
इसलिए यदि आपको
सचमुच अपने व्यक्तित्व को प्रफुल्लित बनाना है तो हमेशा अपनी सोच की दिशा को
सकारात्मक रखिए। किसी भी घटना, किसी
भी विषय और किसी भी व्यक्ति के प्रति अच्छा सोचें, उसके विपरीत न सोचें। दूसरे के प्रति अच्छा सोचेंगे, तो आप स्वयं के प्रति ही अच्छा करेंगे।
कटुता से कटुता बढ़ती है। मित्रता से मित्रता का जन्म होता है। आग, आग लगाती है और बर्फ ठंडक पहुंचाती है।
सकारात्मक सोच
बर्फ की डल्ली है जो दूसरे से अधिक खुद को ठंडक पहुंचाती है। यदि आप इस मंत्र का
प्रयोग कुछ महीने तक कर सके तब आप देखेंगे कि आप के अंदर कितना बड़ा क्रांतिकारी
परिवर्तन हो गया है। जो काम सैकड़ों ग्रंथों का अध्ययन नहीं कर सकता, सैकड़ों सत्संग नहीं कर सकते, सैकड़ों मंदिर की पूजा और तीर्थों की
यात्राएं नहीं कर सकते, वह काम सकारात्मकता संबंधी यह मंत्र कर
जाएगा। आपका व्यक्तित्व चहचहा उठेगा। आपके मित्रों और प्रशंसकों की लंबी कतार लग
जाएगी।
आप
जिससे भी एक बार मिलेंगे, वह बार-बार आपसे मिलने को उत्सुक
रहेगा। आप जो कुछ भी कहेंगे,
उसका अधिक प्रभाव होगा। लोग आपके प्रति
स्नेह और सहानुभूति का भाव रखेंगे। इससे अनजाने में ही आपके चारों ओर एक आभा मंडल
तैयार होता चला जाएगा।
जो भी व्यविᆬत विजेता बनना या अपने व्यविᆬतत्व का विकास करना चाहता है, उसे ज्यादा से ज्यादा ध्यान सकारात्मक
व्यवहार पर केंद्रित करना चाहिए । इससे सभी तरह की उपलब्धियों को प्राप्त करने में
सहायता मिलती है । सभी तरह की सुख-सुविधाओं का मालिक होने का मतलब सिर्फ खुशियां
ही आपके हिस्से में हो, जरूरी नहीं है । सकारात्मक प्रवृति
वाला व्यविᆬत सीमित आय में धनी व्यविᆬत की अपेक्षा ज्यादा खुश रह सकता है ।
जीवन को बदलने के लिए हमें खुद के बारे में बनाई गई धारणाओं को भी बदलना पड़ता है ।
जब हम अपनी सोच, व्यवहार और मान्यताओं में बदलाव लाते
हैं तो पूरा जीवन स्वत: ही बदलने लगता है।
जब
किसी सकारात्मक लक्ष्य के लिए अपने अंदर परिवर्तन लाते हैं तो कुछ भी पाना असंभव
नहीं होता । स्वयं को बदलने की कुंजी हर व्यविᆬत के हाथ में होती है । ज्यादातर लोग
समस्याएं आने पर ही खुद में बदलाव लाते हैं । जो व्यविᆬत हृदय रोग या डायबिटीज से पीडि़त हैं
। उन्हें सामान्य जीवन जीने के लिए अपने खान-पान की आदतों में परिवर्तन लाना होता
है । जीवन को आराम और चैन के साथ जीना भी हमारा एक उद्देश्य है । अंत: समस्या के
पैदा होने से पहले ही अपने अंदर आवश्यक परिवर्तन लाना जरूरी होता है । किसी समस्या
के उत्पन्न हो जाने के बाद दबाव में कुछ करने की बजाय यह एक बेहतर विकल्प है ।
हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि हम खुद से किए गए वादों को पूरा करें । इन वादों को
पूरा करने से हमें हमेशा लाभ मिलता है ।
सकारात्मक सोच स्वास्थ्य
की कुंजी सकारात्मक सोच है।
सोच और
स्वास्थ्य एक-दूसरे के पूरक हैं। मनुष्य की सोच का उसके स्वास्थ्य पर बहुत गहरा
असर पड़ता है। इंसान जैसा सोचता है, उसका
शरीर वैसी ही प्रतिक्रिया करता है। नकारात्मक सोच शरीर को अस्वस्थ बनाती है।
प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती है। सकारात्मक सोच शरीर को स्वस्थ और तनावमुक्त
रखती है। ज्यादा सोचने से भूलने की प्रक्रिया विकसित होती है। इन दिनों हर वर्ग के
लोग मानसिक अवसाद से ग्रस्त हो रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि इंसान की सोच
प्रतिस्पर्धा और आगे बढ़ने की होड़ में उलझती जा रही है। नकारात्मक सोच से
आत्मविश्वास कम हो जाता है और डर की भावना पैदा हो जाती है। इंसान अपने दिमाग का
सिर्फ 10 से 15 प्रतिशत ही इस्तेमाल करता है। ऐसे में अगर सोच नकारात्मक होगी तो
निःसंदेह दिमाग भ्रमित हो सकता है। अच्छी सोच से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। ठीक
इसके विपरीत बुरी सोच से व्यक्ति हताशा और अवसाद से घिर जाता है। दरअसल खुशी से
शरीर की धमनियाँ सजग और सचेत रहती हैं। सोच का सबसे ज्यादा प्रभाव चेहरे पर पड़ता
है। चिंता और थकान से चेहरे की रौनक गायब हो जाती है। आँखों के नीचे कालिख और समय
से पूर्व झुर्रियाँ इसी बात का सबूत हैं। शरीर में साइकोसोमैटिक प्रभाव के कारण
स्वास्थ्य बनता है और बिगड़ता है। धूम्रपान, धूल, धुएँ के अलावा अस्वस्थ सोच से इंसान
दिन-प्रतिदिन पीड़ित हो रहा है। मनुष्य अपने दुःख से दुःखी नहीं, दूसरों के सुख से ज्यादा दुःखी है।
उसकी यह सोच अनेक रोगों को बढ़ा देती है। हमारे सोचने के ढंग को हमारा व्यक्तित्व
भलीभाँति परिभाषित कर देता है, क्योंकि
चेहरा व्यक्तित्व का आईना है।
शरीर पर रोगों
के प्रभाव और सोच का गहरा संबंध है। अत्यधिक सोच के फलस्वरूप गैस अधिक मात्रा में
बनती है और पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। सिर के बाल झड़ने लगते हैं शरीर कई रोगों का
शिकार हो जाता है। अत्यधिक सोचने से असमय बुढ़ापा घेर लेता है। उच्च रक्तचाप
हृदयाघात का कारण बनता है। शंका, रोग
निवारण में अवरोध का काम करती है। रोग का निवारण रोगी के विश्वास से होता है, चिकित्सक की दवा से नहीं। दवा दी जा
रही है, यह भावना अधिक काम करती है। नदियों का
स्रोत यदि हिमालय है तो हमारे स्वास्थ्य का स्रोत हमारा स्वस्थ मन है। यदि व्यक्ति
प्रतिदिन रात्रि में सोते समय सकारात्मक भाव से स्वयं को भावित करे, तो वह अनेक साध्य व असाध्य रोगों का
सफल व स्थायी निवारण कर सकता है। स्वस्थ रहना आसान है और सोच को सकारात्मक रूप
देना उससे भी आसान है। जरूरत है तो सिर्फ सकारात्मक रुख अपनाने की। सकारात्मक सोच
से सेहत बनती है और नकारात्मक सोच अनेक मनोशारीरिक रोगों को जन्म देता है। अगर सोच
को समय के साथ स्वस्थ रूप दिया जाए तो सोच की लकीरें चेहरे पर खिंच नहीं सकतीं।
स्वस्थ व्यक्ति सकारात्मक सोच से हर चीज को देखता है, जबकि अस्वस्थ व्यक्ति की सोच नकारात्मक
रूप से सामने आती है।
शरीर की
बीमारियाँ सोच से प्रेरित होती हैं। ऐसे में अपनी सोच को सही दिशा देना या सोच को
सीमित करना आज के युग में मुश्किल काम है। आसपास के वातावरण से बहुत कुछ सीखा जा
सकता है। केवल प्रकृति के समीप रहकर ही स्वस्थ रहा जा सकता है। मनुष्य का दिमाग और
शरीर दोनों ही संतुलित रह सकते हैं। क्रोधित होने पर यदि व्यक्ति शीघ्र प्रसन्न हो
जाए तो शरीर में होने वाले नुकसान से स्वयं को बचा जा सकता है। नकारात्मक सोच का
प्रभाव बहुत जल्दी शरीर को रोगग्रस्त बनाता है। सकारात्मक सोच का प्रभाव बहुत ही
धीमा होता है। लेकिन होता अवश्य है।